शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में शक्ति पूजा का विधान है। शारदीय नवरात्र का अपना महत्त्व है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री ये देवी के नौ रूप हैं इन नौ देवी रूपों का पूजन होने से नवरात्र कहा गया है। इन देवियों का लोककल्याणकारक रूप ही दुर्गा है। दुर्गा पूजा का अनुष्ठान नौ दिन तक विविध प्रकारों से सम्पूर्ण देश में धूमधाम व भक्तिपूर्वक होता है। ये दिन उपासना के लिए महत्त्वपूर्ण माने गए है। इन नौ दिनों तक अखण्ड ज्योति प्रज्वलित रखने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप या तप का हजार गुना फ़ल होता है। देवी को लाल रंग प्रिय है अत: दीपक की लौ का रंग से साम्य होने से वह अपनी उपस्थिति दीपों के पास बनाए रखती है। अपनी परम्परा में भी शक्ति उपासना को अत्यंत महत्त्व दिया गया है। साधक सद्गुरुकृपा से अपनी शक्ति को जाग्रत करके अपनी ऊर्जा के मूल स्वरूप की पहचान कर लेता है। इस शक्ति को उर्ध्वगति द्वारा शिव से संयोग कराने का उपक्रम ही सिद्धि है। यह सिद्धि प्रत्येक साधक को उपलब्ध हो यही सद्गुरु प्रभु बा का मंतव्य है।
–सं. व. राव
पूर्वप्रसिद्धी- शिवप्रवाह सितम्बर 2010.
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