करुणात्रिपदी हिंदी अर्थ

पद पहला
हे श्री गुरुदत्ता कृपया मेरे मन को शांत कीजिये। केवल तू ही माता एवं जन्मदाता है, तू ही पूर्णतया हित करनेवाला है। तू ही मित्र, स्वजन, बंधु एवं तारणकर्ता है। तू ही भयभीत करनेवाले एवं भय से मुक्ति दिलानेवाला हैं। तू ही दण्ड देनेवाला एवं दण्ड से मुक्त करनेवाला हैं (क्षमा करनेवाला) हैं। तेरे बिना अब किसी अन्य बात की आकांक्षा नहीं। आर्त स्वर से तुझे पुकारने वालों का तू आश्रयदाता हैं। हे गुरुदत्त मेरे मन को शांत कीजिए।
यदि हमारे अपराधों के कारण, यर्थार्थ के खातिर आपने मुझे दंड दिया, तो भी हम आपका स्तुतिगान करेंगे और आपके चरणों में नतमस्तक होंगे। आप यदि हमें दंड देंगे तो हम किसको पुकारें ? आपके दंड से हमें दूसरा कौन मुक्ति देगा?
हमारे पाप करने पर तुम (आप) रुष्ट होते हो और हमें दण्ड देते हो। पुन: अपराध करने पर भी तुम हम से (रुष्ट) क्रोधित नहीं होते। कहीं तडखडा गया होगा “ऐसा मानकर आप रुष्ट तो नहीं होते हैं”। भगवन हमेशा हम पर आपकी कृपा दृष्टि रहे। हे गुरुदत्त मेरे मन को शांत कीजिए।
हे तात यदि हम आपकी छत्रछाया में रहते हुए यदि गलत रास्ते पर हैं तो हमें कृपया संभालें एवं सही मार्ग पर लें क्योंकि आपके बिना हमारा कोई तारणरकर्ता नहीं है। हे पतितपावन भगवान दत्त, करुणाघन, गुरुनाथ हमारे मन को शांत कीजिये।
सहकुटुंब सहपरिवार हम आपके दास हैं। ( यह नीरस) संसार के हित की खातिर यह आपको चरणार्पित हैं । हे करुणासिंधु परिहार करो। हे करुणासिन्धु हम पाप के भागी न हो। हे गुरुदत्त, मन को शांति दीजिये।
पद दूसरा
हे गुरुदत्त भगवन तेरी जय हो। उस (तुम्हारे ) मन को कठोर मत कीजिए। जो मन चोरे ब्राह्मण को मारते समय दु:खी हुआ वैसा ही अब भी होने दो। ब्राह्मण के पेट में व्याधि होने से वह तडप रहा था, तब आप का मन जैसे दु:खी हुआ वह अब भी (मेरे लिए) कष्टी होने दो। ब्राह्मण पुत्र के मरने से मन दु:खी हुआ वह अब मेरे लिए दु:खी नहीं हो रहा है। सतिपति के मरते समय जो मन शोकाकुल हुआ उस मन को अब क्या हुआ। वह अब नहीं बदल रहा। (कठोर ही है) हे श्रीगुरुदत्त आप कठोरता(निष्ठुरता) त्याग कर अपने कोमल चित्त को मेरी तरफ़ करें।
पद तीसरा
हे करुणाघन निजजनों के जीवन, अनसूयानंदन, आपकी जय हो ॥धृ॥
हे जनार्दन, मेरे अपराधों को नजर अन्दाज कर मुझे माफ़ करें।
हे करुणाकर, आप तो हम पर कभी रुष्ट नहीं होते। हे कृपाघन हम दासों पर आपकी कृपादृष्टि हमेशा रहती है। हे वामन तुम हमारे माता-पिता हो। इसलिए (हमारे लिए) मन में क्रोध न रखते हुए हमारे अपराधों को क्षमा करो।
यदि बालक के अपराधों पर माता रुष्ट होगी तब और कौन उसका तारण करनेवाला एवं जीवन सुधारनेवाला होगा?
इसलिये मैं आपके चरणों पर मस्तक रखते हुए (आपसे) प्रार्थना करता हूँ। “हे (वासुदेवका) देव अत्रिनंदन आपके चरणकमलों में मेरा भाव सदा रहने दो”।
……शिव उपासना पुस्तक से लिया हुआ भाषांतर.
Like this:
पसंद करें लोड हो रहा है...
Related
टैग: Hindi Translation, Karunatripadee
Smita Gadre
मार्च 19, 2016 at 12:39 अपराह्न
Nice and helpful in circulating to those who want to know!
Thanks and Jai Shri Krishna
rajyogi255
मार्च 12, 2016 at 8:24 अपराह्न
Shree Gurudev Datta